हिन्दुओं के रीति-रिवाजों के वैज्ञानिक कारण जान दंग रह जाएंगे आप, हर एक का है अपना अलग महत्व

वि.हि.स. (हेमन्त कुमार शर्मा) :: हिंदू धर्म में बहुत से ऐसे रीति-रिवाज हैं जिनके वैज्ञानिक आधार हैं

रीति-रिवाज और परंपराएं हर किसी की व्यक्तिगत आस्था का सवाल होती हैं। लेकिन हिंदू धर्म में बहुत से ऐसे रीति-रिवाज हैं जिनके वैज्ञानिक आधार हैं।

हाथ जोड़कर नमस्कार करना हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा और सभ्यता है

हाथ जोड़कर नमस्कार करना हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा और सभ्यता है। दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करने से आप सामने वाले को सम्मान भी देते हैं साथ ही इस क्रिया के वैज्ञानिक महत्व के कारण आपको शारीरिक लाभ भी मिल जाता है। जब हम दोनों हाथों को आपस में जोड़ते हैं तो हमारी हथेलियों और उंगलियों के उन बिंदुओं पर दबाव पड़ता है जो आंख, नाक, कान, दिल आदि शरीर के अंगों से सीधा संबंध रखते हैं। इस तरह दबाव पड़ने को एक्वा प्रेशर चिकित्सा भी कहते हैं। इस तरह नमस्कार करने से हम सामने वाले के स्पर्श में भी नहीं आते हैं, जिससे किसी प्रकार के संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता है।

पैर की उंगली में रिंग पहनना भारतीय संस्कृति का हिस्सा है

पैर की उंगली में रिंग पहनना भारतीय संस्कृति का हिस्सा तो है ही, लेकिन इसके वैज्ञानिक फायदे भी है। अमूमन रिंग को पैर के अंगूठे के बगल वाली दूसरी उंगली में धारण किया जाता है। इस उंगली की नस महिलाओं के गर्भाशय और दिल से संबंध रखती हैं। पैर की उंगली में रिंग पहनने से गर्भाशय और दिल से संबंधित बीमारियों की गुंजाइश नहीं रहती है। साथ ही चांदी की रिंग पहनना ज्यादा ठीक होता है। चांदी ध्रुवीय ऊर्जा से शरीर को ऊर्जावान बना देती है।

पुराने समय में तांबे के सिक्के हुआ करते थे

पुराने समय में तांबे के सिक्के हुआ करते थे जिनकी जगह आज स्टेनलैस स्टील के सिक्कों ने ले ली है। तांबा पानी को शुद्ध करता है। इसलिए पुराने में समय में नदियां में तांबे के सिक्के इसलिए डाले जाते थे, क्योंकि ज्यादातर नदियां ही पीने के पानी का श्रोत हुआ करती थीं।

दोनों भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से उस बिंदू पर दवाब पड़ता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे खास हिस्सा माना जाता है

दोनों भौहों के बीच माथे पर तिलक लगाने से उस बिंदू पर दवाब पड़ता है जो हमारे तंत्रिका तंत्र का सबसे खास हिस्सा माना जाता है। तिलक लगाने से इस खास हिस्से पर दबाव पड़ते ही ये सक्रिय हो जाता है और शरीर में नई ऊर्जा का संचार होने लगता है। तिलक लगाने से एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है। चेहरे की मांसपेशियों में रक्त का संचार भी सही से होता है।

मंदिर में घंटे या घंटियां होने का भी वैज्ञानिक कारण है

मंदिर में घंटे या घंटियां होने का भी वैज्ञानिक कारण है। घंटे की आवाज कानों में पड़ते ही आध्यात्मिक अनुभूति होती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और मन शांत हो जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि धंटे की आवाज बुरी आत्माओं को मंदिर से दूर रखती है। घंटे की आवाज भगवान को प्रिय होती है। जब हम मंदिर में घंटा बजाते है तो करीब सात सेकेंड तक हमारे कानों में उसकी प्रतिध्वनि गूंजती है। माना जाता है कि इस दौरान घंटे की ध्वनि से हमारे शरीर में मौजूद सुकून पहुंचाने वाले सात बिंदू सक्रिय हो जाते हैं और नाकारात्मक ऊर्जा शरीर से बाहर हो जाती है।

मेंहदी औषधीय गुणों से युक्त प्राकृतिक जड़ी बूटी है

मेंहदी औषधीय गुणों से युक्त प्राकृतिक जड़ी बूटी है। मेंहदी की महक से तनावमुक्त होने में मदद मिलती है। यही वजह है कि शादियों या अन्य भारतीय कार्यक्रमों में मेंहदी को परंपरा का अहम हिस्सा माना जाता है।

धरती पर बैठकर भोजन करने की परंपरा है

भारतीय संस्कृति में धरती पर बैठकर भोजन करने की परंपरा है। इसका वैज्ञानिक कारण ये है कि जब हम धरती पर दोनों पैर मोड़कर बैठते हैं तो इस अवस्था को सुखासन या अर्ध पदमासन कहते हैं। इस प्रकार बैठने से दिमाग की उन धमनियों को सकारात्मक संदेश पहुंचता है जो पाचन तंत्र से जुड़ी होती हैं।

सुबह की शुरुआत को सूर्य नमस्कार

पुराने समय से ही हमारी दिनचर्या में सुबह की अहमियत पर बल दिया गया है। इसलिए भारतीय संस्कृति में सुबह की शुरुआत को सूर्य नमस्कार से जोड़ा गया है। भारतीय लोग सूर्य को पानी से अर्घ्य देकर नमस्कार करते हैं। पानी से टकराकर सूर्य की किरणें आखों में पड़ने से आंखों की बीमारियां नहीं होती है। साथ ही बारह तरह के आसन एक साथ होने से शरीर बलिष्ट होता है।

चोटी तंत्रिका तंत्र को सुरक्षा प्रदान करती है

आर्युवेद में बताया जाता है कि सिर के जिस भाग में चोटी (शिखा) को धारण किया जाता है, वह भाग तंत्रिका तंत्र से सीधे संपर्क में होता है। चोटी इस तंत्र को सुरक्षा प्रदान करती है। इससे एकाग्रता में बढ़ोतरी होती है और शरीर को ऊर्जा मिलती है।

उपवास के फायदों को विज्ञान ने भी माना है

उपवास के फायदों को विज्ञान ने भी माना है। आर्युवेद के अनुसार जिस प्रकार पृथ्वी के ज्यादातर हिस्से में पानी और कम हिस्से में ठोस जमीन है, उसी तरह मानव शरीर भी बना है। मानव शरीर 80 प्रतिशत द्रव्य और 20 प्रतिशत ठोस पदार्थों से मिलकर बना है। चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल शरीर के द्रव्य पदार्थों को प्रभावित करता है। इससे शरीर में भावनात्मक असंतुलन पनपता है। इससे तनाव, चिड़चिड़ापन होने लगता है। विज्ञान मानती है कि उपवास इलाज के तौर पर काम करता है। इससे खतरनाक टॉक्सिन्स को दूर करने में मदद मिलती है। साथ ही मधुमेह, कैंसर और हृदय की बीमारियों से भी बचाव होता है।

पैर छूना या चरण स्पर्श करना

पैर छूना या चरण स्पर्श करना एक प्रकार की सम्मान दर्शाने वाली क्रिया है। जब हम किसी को झुककर प्रणाम करते हैं तो हमारे शरीर की नाकारात्मक तो हमारे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। ऐसा हाथ मिलाने या गले लगने से भी होता है।

सिंदूर का महिलाओं के शरीर से काफी महत्वपूर्ण संबंध है

ये जानना वाकई दिलचस्प है कि सिंदूर का महिलाओं के शरीर से काफी महत्वपूर्ण संबंध है। हल्दी, चूना और धातु पारा से बना सिंदूर महिलाओं के शरीर में खून के बहाव को नियंत्रित करता है और कामेच्छा को बढ़ाने में कारगर होता है। यही कारण है कि विधवा महिलाओं को सिंदूर लगाना मना होता है। सिंदूर में मौजूद धातु पारा के तत्व तनाव और चिड़चिड़ेपन को दूर करते हैं।

पीपल का पेड़ रात में भी ऑक्सीजन प्रदान करता है

पीपल आमतौर पर छाया देने अलावा मानव के इस्तेमाल में कम ही आता है। लेकिन इसकी पूजा करने का सबसे बड़ा कारण है इसका संरक्षण करना। वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल का पेड़ मानव जीवन के लिए इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि पीपल का पेड़ रात में भी ऑक्सीजन प्रदान करता है।

तस्वीर या मूर्ति को देखकर प्रार्थना करते हैं तो पूरा ध्यान उसी आराध्य देवी-देवता के ऊपर हो जाता है

भारत में मूर्ति पूजा के चलन का वैज्ञानिक कारण बताया जाता है। कहा जाता है कि जब हम किसी की तस्वीर या मूर्ति को देखकर प्रार्थना करते हैं तो पूरा ध्यान उसी आराध्य देवी-देवता के ऊपर हो जाता है। मन एकदम एकाग्र और नियंत्रित हो जाता है। इसलिए भारत में आध्यात्मिक उन्नति के लिए मूर्ति पूजा को मानव जीवन का अहम हिस्सा बताया जाता है।

कलाइयों में चूड़ियां पहनने से हाथों का ब्लड फ्लो ठीक होता है

हाथों में चूड़ियां पहने का भी दिलचस्प वैज्ञानिक कारण है। कहा जाता है कि कलाइयों में चूड़ियां पहनने से हाथों का ब्लड फ्लो ठीक होता है साथ ही चूड़ियों के वजह से ऊर्जा भी नियंत्रित रहती है।

मंदिर ऐसे स्थानों पर बने होते हैं जहां पर उत्तर और दक्षिणीय ध्रुवों के चुंबकीय और विद्युतीय बलों के कारण सकारात्मक ऊर्जा भरपूर मात्रा में होती है। मंदिर में मुख्य मूर्ति ठीक बीच में स्थापित की जाती है। इस जगह को मूल स्थान या गर्भगृह भी कहते हैं। जहां मूर्ति की स्थापना होती है उस स्थान के नीचे वैदिक मंत्रों से लिखी तांबे की धातुएं रखी जाती है। तांबा धरती के चुंबकीय बल को अपनी ओर आकर्षित करता है। इसलिए जब कोई नियमित तौर पर मंदिर में जाकर परिक्रमा करता है तो तांबे के इसी चुंबकीय प्रभाव के कारण शरीर की नकारात्मक ऊर्जा भी धीरे-धीरे सकारात्मक ऊर्जा का स्थान ले लेती है।

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