दीपावली के बाद कैसे मनाएं गोवर्धनपूजा एवं भैयादूज का त्यौहार…???

वैन (दिल्ली ब्यूरो) :: गोवर्धनपूजन

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा इस दिन इंद्रपूजनके स्थानपर गोवर्धनपूजन आरंभ किए जानेके स्मरणमें गोवर्धन पूजन करते हैं । इसके लिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदाकी तिथिपर प्रात:काल घरके मुख्य द्वारके सामने गौके गोबरका गोवर्धन पर्वत बनाते हैं । शास्त्रमें बताया है कि, इस गोवर्धन पर्वतका शिखर बनाएं । वृक्ष-शाखादि और फूलोंसे उसे सुशोभित करें । परंतु अनेक स्थानोंपर इसे मनुष्यके रूपमें बनाते हैं और फूल इत्यादिसे सजाते हैं । चंदन, फूल इत्यादिसे उसका पूजन करते हैं और प्रार्थना करते हैं।

गोवर्धन धराधार गोकुलत्राणकारक।
विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव ।। – धर्मसिंधु

इसका अर्थ है, पृथ्वीको धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप गोकुलके रक्षक हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने आपको भुजाओं में उठाया था। आप मुझे करोडों गौएं प्रदान करें। गोवर्धन पूजनके उपरांत गौओं एवं बैलोंको वस्त्राभूषणों तथा मालाओंसे सजाते हैं। गौओं का पूजन करते हैं। गौमाता साक्षात धरतीमाताकी प्रतीकस्वरूपा हैं। उनमें सर्व देवतातत्त्व समाए रहते हैं । उनके द्वारा पंचरस प्राप्त होते हैं, जो जीवों को पुष्ट और सात्त्विक बनाते हैं। ऐसी गौमाताको साक्षात श्री लक्ष्मी मानते हैं। उनका पूजन करनेके उपरांत अपने पापनाशके लिए उनसे प्रार्थना करते हैं। धर्म सिंधु में इस श्लोक द्वारा गौमातासे प्रार्थना की है।

लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु ।। – धर्मसिंधु

इसका अर्थ है, धेनुरूपमें विद्यमान जो लोकपालोंकी साक्षात लक्ष्मी हैं तथा जो यज्ञके लिए घी देती हैं, वह गौमाता मेरे पापोंका नाश करें। पूजन के उपरांत गौओंको विशेष भोजन खिलाते हैं। कुछ स्थानोंपर गोवर्धनके साथही भगवान श्रीकृष्ण, गोपाल, इंद्र तथा सवत्स गौओंके चित्र सजाकर उनका पूजन करते हैं और उनकी शोभायात्रा भी निकालते हैं।

यमद्वितीया अर्थात भैय्यादूज

असामायिक अर्थात अकालमृत्यु न आए, इसलिए यमदेवताका पूजन करनेके तीन दिनोंमेंसे कार्तिक शुक्ल द्वितीया एक है । यह दीपोत्सव पर्वका समापन दिन है। `यमद्वितीया’ एवं `भैय्यादूज’ के नामसे भी यह पर्व परिचित है । इन तीन दिनोंमेंसे यह एक दिन है । इन दिनोंमें भूलोकमें यम तरंगें अधिक मात्रामें आती हैं । इन दिनों यमादि देवताओंके निमित्त किया गया कोई भी कर्म अल्प समयमें फलित होता है । इन तरंगोंके कारण विविध कष्ट हो सकते हैं, जैसे अपमृत्यु होना, दुर्घटना होना, स्मृतिभ्रंश होनेसे अचानक पागलपनका दौरा पडना, मिरगी समान दौरे पडना अर्थात फिट्स आना अथवा हाथमें लिये हुए कार्यमें अनेक बाधाएं आना । इसलिए कार्तिक शुक्ल द्वितीयाकी तिथिपर यमदेवका पूजन करते हैं। चौकीपर रखे चावलके तीन पुंजोंपर तीन सुपारियां रखते हैं । चौपाए पर चावलके तीन छोटे छोटे पूंजोंपर तीन सुपारियां रखी जाती हैं।

पृथ्वी यमकी बहनका रूप है । इस दिन यमतरंगें पृथ्वीकी कक्षामें आती हैं । इसलिए पृथ्वीकी कक्षामें यमतरंगोंके प्रवेशके संबंधमें कहते हैं कि, कार्तिक शुक्ल द्वितीयाकी तिथि पर यम अपने घरसे बहनके घर अर्थात पृथ्वीरूपी भूलोकमें प्रवेश करते हैं । इसलिए इस दिनको यम– द्वितीयाके नामसे जानते हैं । यमदेवताके अपनी बहनके घर जानेके प्रतीकस्वरूप प्रत्येक घरका पुरुष अपनेही घरपर पत्नी द्वारा बनाए गए भोजनका न सेवन कर बहनके घर जाकर भोजन करता है । बहन द्वारा यम देवता का सम्मान करनेके प्रतीक स्वरूप यह दिन `भैय्यादूज’ के नामसे भी प्रचलित है । इस दिन भोजनसे पूर्व बहन भाईका औक्षण करती है । इसमें वह प्रथम भाईको कुमकुम तिलक एवं अक्षत लगाती है । तदुपरांत भाई के मुखके चारों ओर अर्धगोलाकार आकृतिमें तीन बार सुपारी एवं अंगूठी घुमाती है। इसके उपरांत अर्धगोलाकारमें तीन बार आरती उतारती है । औक्षण करनेके लिए उपयोगमें लाए गए तेलके दीपमें ईश्वरीय शक्तिका प्रवाह आकर्षित होता है। औक्षण करते समय दीपको अर्धगोलाकार घुमानेसे दीपके सर्व ओर शक्तिका कार्यरत वलय उत्पन्न होता है । इस वलय द्वारा शक्ति की कार्यरत तरंगें भाई की ओर प्रक्षेपित होती हैं। भाई की सूर्य नाडी कार्यरत होती है तथा उसमें शक्ति का वलय उत्पन्न होता है। भाई की देहमें शक्ति के कणों का संचार होता है तथा उसकी देहके सर्व ओर सुरक्षाकवच बनता है।

इस दिन बहनें भाईके रूपमें यमदेवका औक्षण कर उनका आवाहन कर पितृलोककी अतृप्त आत्माओंको प्रतिबंधित करनेके लिए उनसे प्रार्थना करती हैं । इस प्रकार परिजनों को यम तरंगों के कारण होनेवाले कष्ट घटते हैं। यमतरंगोंसे परिजनोंकी रक्षा होती है । वास्तुका वायुमंडल शुद्ध बनता है । पृथ्वीका वातावरण सीमित समयके लिए यातना रहित अर्थात आनंददायी रहता है। औक्षणके उपरांत भाई बहनके हाथसे बना भोजन ग्रहण करता है । ऐसा बताया गया है, कि सगी बहन न हो, तो भाईदूजके दिन चचेरी, ममेरी किसी भी बहन के घर जाकर अथवा किसी परिचित स्त्रीको बहन मानकर उसके घर भोजन करना चाहिए।

भोजनके उपरांत भाई यथाशक्ति वस्त्राभूषण, द्रव्य इत्यादि उपहार देकर बहनका सम्मान करता है । यह उपहार सात्त्विक हो, तो अधिक योग्य है। जैसे साधना संबंधी, धर्मसंबंधी ग्रंथ, देवतापूजन हेतु उपयुक्त वस्त्र इत्यादि। कुछ स्थानोंपर स्त्रियां सायंकालमें चंद्रमाका औक्षण कर उसके उपरांत ही भाईका औक्षण करती हैं। भाई न हो, तो कुछ स्थानोंपर बहन चंद्रमाको भाई मानकर उनका औक्षण करती है।

इस दिन स्त्रीद्वारा चंद्रमा का आवाहन करने से चंद्रतरंगें कार्यरत होती हैं । ये तरंगें वायुमंडलमें प्रवेश करती हैं। इन तरंगोंकी शीतलताके कारण ऊर्जामयी यमतरंगें शांत होती हैं तथा वातावरणकी दाहकता घटती है। इससे यमदेवका क्षोभ भी मिटता है । इसके उपरांत वातावरण प्रसन्न अर्थात सुखद बनता है । वातावरणकी इस प्रसन्नताके कारण स्त्रियोंके अनाहत चक्रकी जागृति होती है । परिणामस्वरूप यमदेवताके उद्देश्यसे भाईके पूजनकी विधिद्वारा भाव बढनेमें सहायता मिलती है तथा इष्ट फलप्राप्ति होती है।

इस दिन स्त्रीमें देवीतत्त्व जागृत रहता है । इसका लाभ भाईको उसके भावानुसार मिलता है । भाई साधना करता हो, तो उसे आध्यात्मिक स्तरपर लाभ मिलता है। वह साधना न करता हो, तो उसे व्यावहारिक लाभ मिलता है । भाई कामकाज संभालते हुए साधना करता हो, तो उसे दोनों स्तरपर पचास–पचास प्रतिशत लाभ मिलता है।

यमद्वितीयाकी तिथिपर बहन अपने भाईके कल्याणके लिए प्रार्थना करती है । इसका फल भाईको बहनके भावानुसार प्राप्त होता है । इसलिए बहनका भाईके साथ लेन-देन अंशतः घट जाता है। इसलिए यह दिन एक अर्थसे लेन-देन घटानेके लिए होता है । भाईदूजके दिन भाईमें शिवतत्त्व जागृत होता है। इससे बहनका प्रारब्ध एक सहस्त्रांश प्रतिशत घट जाता है । भाईदूजके दिन शास्त्रमें बताए अनुसार कृति करनेके लाभ हमने समझ लिए । इन सूत्रोंसे हिंदु धर्ममें बताए पर्वो उत्सवोंका महत्त्व समझमें आता है।

Source :: vannewsagency

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